क्या वाकई इतनी सस्ती है जिंदगी और आजाद है हम……

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विज़न2020न्यूज। भारत 70वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में है। चारो तरफ तैयारियां भी जोरो में है। पर सवाल ये है कि क्या वाकई देश से बुराई से आजाद है? राजनीतिक समय समय वोटरों को लुभाने के लिए वादे करते है क्या वाकई पूरे होते है? देश में स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार,समेत और जरूरी संसाधन मिले है ? भष्ट्राचार, भूखमरी, गरीबी नाम के राक्षक से देश को मुक्ति मिल चुकी है?क्या वाकई !!
इसका जबाब शायद इन कुछ घटनाओं के बारे में सोच कर मिल जाए जो आजादी के जश्न के बीच शायद ये याद दिला दे कि अभी भी हम बुराईयों से जकड़े हुए है।

हर दिन पांच से ज्यादा रेप केस एक राज्य मे दर्ज होते है। निर्भया केस देश की सबसे शर्मशार घटनाओं में से एक है। कितनी बेदर्दी से इंसानियत की इज्जत मिट्टी में मिला दी गई। मीडिया और जनआक्रोश ने रेप आरोपियों के खिलाफ कानून तो बनाए गए। पर आज भी समाज में रेप की घटनाओं में कोई गिरावट नही हुई। हैवानियत की सारी सीमाएं तोड़ने का रिवाज आज भी समाज में जारी है।

दिल्ली के उत्तम नगर में तड़के पांच बजे एक डंपर ने एक व्यक्ति को कुचल दिया। और विडंवना देखिए लोगों ने उसे देखा पर मदद के लिए नही आया। एक व्यक्ति उस पीड़ित की तरफ बढ़ा पर एसे सहायता के लिए नही उसका मोबाइल फोन उठाने के लिए। क्या इतने खुदगर्ज हे लोग इस लोकतांत्रिक देश में!
देश के नेता आए दिन एक नए घोटाले में दोशी करार होते है। कोई भ्रष्ट्र नेता कैसे जनता की उम्मीदों पर खरा उतर सकता है। क्या वाकई वो भारत देश की निःस्वार्थ भाव से सेवा करता है। या अपना घर रूपयों से भरने के लिए राजनीति को कलंकित करता है।

देश में सूखे के हाल ऐसे हुए कि सैकड़ों किसानों ने मौत को मुंह लगा लिया। हर्जाने के नाम पर झूठे वादे। क्या वाकई इन वादों से इन किसानों और इनके परिवार का पेट भर सकता है!

महिला उत्पीड़न तो सदियों से चलती आ रही प्रथा है। शोध के मुताबिक भारत के हर दूसरे घर में एक महिला घरेलु हिंसा का शिकार होती है। क्या अपने हक और अधिकारों की बात कहने से मुंह पर बद्जुबानी की मोहर लग जाती है। ओर उन्हें समाज और इज्जत की बात कहकर चुप कराया जाता है। क्या महिलाओं को भी समानता का अधिकार मिलने के बाद वो अपने हक के लिए तरसती है!

बेरोजगारी का आलम ऐसा है कि चपरासी की पोस्ट के लिए पीएचडीधारक तक उस पोस्ट के लिए अप्लाई करते है।
औरत को ममता का समुद्र माना जाता है। उत्तरप्रदेश के बहराइच में कथित रूप से रिश्रवत ना मिलने पर नर्स की लापरहवाही से एक 10 माह के बच्चे की जान चली गई। थोड़ी सी रकम क्या वाकई एक मासूम की लान से ज्यादा थी। क्या वाकई बच्चे की जान एक नर्स के लालच ने ली या मासूम की गरीबी ने!

इतनी बुराएयां तो व्याप्त है देश में। तो कैसे कह सकते है हम, कि आजाद है हम!! ये बस थोड़े से कड़वे उदाहरण है जिन्हें पढ़कर आपके मन में कुछ सवाल आएगें । तो पूछियेगा जरूर….इतनी बुराएयां तो व्याप्त है देश में। तो कैसे कह सकते है हम, कि आजाद है हम!! सोचिएगा जरूर….

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