उत्तराखंड का प्रसिद्व बग्वाल मेला शुरू हो गया है। पौराणिक महत्वता रखने वाले इस मेले में जगह जगह से लोग जुटने लगे है। अल्मोड़ा में रानीखेत विकासखंड के बग्वालीपोखर में एतिहासिक बग्वाली मेला शुरू हो गया। पांडवकालीन पौराणिक स्थल पर शंखनाद के साथ ही वीर रस की हुंकार के बीच संस्कार नृत्य श्रंगार नृत्य करते रणबांकुरों की अगुवाई में सबसे पहले भंडरगांव के ग्रामीणों ने दो जोड़े नगाड़े निशाड़ों के साथ ओडा भेंटने की रस्म निभाई।
किंवदंती है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों का पीछा करते हुए कौरव यहां तक पहुंचे थे। थक जाने पर कौरवों ने यहां पर द्युत क्रीड़ा के जरिए कई दिनों तक अपनी थकान मिटाई और डेरा जमाए रहे। मगर पांडवों का पता नहीं लगा सके।
इसी आधार पर कालांतर में यहां जुआ खेलने की परंपरा चली। मगर कालांतर में जन जागरूकता के साथ ही जुआ खेलने की परंपरा खत्म हो गई है। लोक कलाकारों की दिलकश प्रस्तुति ने देवभूमि की सांस्कृतिक विरासत को मंच पर जीवंत किया।
इस मौके पर मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कौतिक (मेलों) को हिमालयी राज्य की पहचान बताते हुए खासतौर पर युवाओं से अपनी संस्कृति व लोक परंपरा को बचाए रखने के लिए आगे आने का आह्वान किया।