यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत कर रही हैं यें…

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जयपुर: निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता तस्लीमा नसरीन ने समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए कहा कि लोगों को अपने अधिकार दिलाने के लिए यह कदम तुरंत उठाने की जरूरत है. वहीं, जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल कार्यक्रम में उनका नाम नहीं होने के बावजूद उनका सत्र आयोजित करने के खिलाफ कुछ मुस्लिम संगठनों ने प्रदर्शन किया.

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के एक सत्र में लेखिका ने कहा कि इस्लामिक समाज को प्रगति करने के लिए आलोचनाओं के प्रति ज्यादा सहिष्णु होना चाहिए. कट्टरपंथियों के निशाने पर आने के बाद से वह 1994 से निर्वासन में रह रही हैं. उन्होंने कहा, ‘‘इस्लामिक समाज के लिए सहिष्णु बनना आवश्यक है और आलोचनाओं को स्वीकार किए बगैर प्रगति नहीं हो सकती. लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए समान नागरिक संहिता अत्यंत आवश्यक है.’’

इंग्लिेश पेन के पूर्व बोर्ड सदस्य सलिल त्रिपाठी के साथ बातचीत में लेखिका ने धार्मिक कट्टरपंथियों की आलोचना करते हुए कहा कि वह ‘‘राष्ट्रवाद’’ या ‘‘धार्मिक कट्टरता’’ जैसे शब्दों पर विश्वास नहीं करतीं. यह संगठन साहित्य और उसकी समझ को प्रोत्साहन देने और दुनियाभर में लेखकों की स्वतंत्रता की रक्षा करने में शामिल है. नसरीन ने कहा, ‘‘मैं राष्ट्रवाद, धार्मिक कट्टरपंथ में विश्वास नहीं करती. मैं एक विश्व में विश्वास करती हूं. मैं अधिकारों, स्वतंत्रता, मानवता और समानता में विश्वास करती हूं. जब तक इस्लाम आलोचनाओं को स्वीकार नहीं करता तब तक किसी भी इस्लामिक देश को धर्मनिरपेक्ष नहीं माना जा सकता. जब भी मैं आलोचना करती हूं, लोग मुझे मार डालना चाहते हैं.’’

मुस्लिम धर्मगुरओं द्वारा उनके खिलाफ 2007 में फतवा जारी किए जाने के बाद पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा उनके साथ किए गए सलूक का हवाला देते हुए उन्होंने सवाल किया कि क्यों धर्मनिरपेक्ष लेखकों को देश छोड़ने पर मजबूर किया गया या उनकी हत्या कर दी गई. नसरीन ने कहा, ‘‘धर्मनिरपेक्ष लेखकों को देश छोड़कर जाने पर मजबूर किया जा रहा है या उनकी हत्या की जा रही है जबकि धार्मिक कट्टरपंथियों को आश्रय दिया जा रहा है. मुझ पर कोलकाता में हमला हुआ. मेरे खिलाफ फतवा जारी किया गया.’’ उन्होंने कहा, ‘‘धर्मनिरपेक्षता का मतलब ऐसे लोगों को बचाना नहीं है ताकि मुस्लिम वोट हासिल किया जा सके. हिंदू और मुस्लिम कट्टरपंथियों ने हम पर बराबर हमले किए लेकिन उन्हें कभी दंडित नहीं किया गया.’’

तसलीमा नसरीन के सत्र के दौरान राजस्थान मुस्लिम फोरम, ऑल इंडिया मिल्ली काउन्सिल, जमात-ए-इस्लामी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठनों ने प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने बाद में साहित्य महोत्सव के संस्थापक संजय के रॉय से मुलाकात की और दावा किया कि उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि नसरीन को फिर से साहित्य महोत्सव में नहीं बुलाया जाएगा.

नसरीन के सत्र का शीषर्क था ‘निर्वासन.’ साहित्य महोत्सव के कार्यक्रम में वक्ताओं की सूची में उनके नाम का उल्लेख नहीं था. ऐसा संभवत: प्रदर्शनों से उन्हें बचाने के प्रयासों के तहत किया गया था. दस साल पहले गुलाबी नगरी जयपुर में इसी तरह के प्रदर्शन देखने को मिले थे. साहित्य महोत्सव के सह-आयोजक विलियम डैलरिंपल और कुछ भी बताने के प्रति अनिच्छुक दिखे. उन्होंने कहा, ‘‘उन्हें साफ-साफ तौर पर पता नहीं था कि वह आ रही हैं.’’ संजय से बातचीत करने के प्रयास किए गए लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली. सूत्रों ने बताया कि आयोजक इस मुद्दे पर आधिकारिक तौर पर कुछ भी टिप्पणी नहीं करना चाहते थे.

हालांकि, प्रदर्शनकारियों में शामिल वुमन इंडिया मूवमेंट की अध्यक्ष मेहरूनिसा खान ने कहा कि उन्हें आयोजकों से आश्वासन मिला कि वे फिर से नसरीन को आमंत्रित नहीं करेंगे. मेहरूनिसा ने कहा, ‘‘नसरीन विवादास्पद शख्सियत हैं. जेएलएफ आयोजकों ने जेएलएफ बुकलेट के कार्यक्रम में उनके नाम का उल्लेख नहीं किया. आयोजकों ने आंख-मिचौली का खेल खेला और पुलिस प्रशासन ने भी उनका समर्थन किया और उन्हें सत्र में आने दिया. इसलिए हम प्रदर्शन करने गए थे.’’

मेहरुनिसा ने कहा, ‘‘हमारी आयोजकों से मुलाकात हुई थी, जहां प्रोड्यूसर संजय रॉय ने वादा किया कि वे अगले साल से सलमान रश्दी और नसरीन को मंच नहीं प्रदान करेंगे.’’ नसरीन को कल रात होटल में भोजन करते देखा गया था, जहां पत्रकार और प्रतिनिधि आम तौर पर मिलकर बातचीत करते हैं लेकिन वह किसी तरह वहां से निकल गईं. वर्ष 2007 में जब लेखिका को पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य से बाहर चले जाने को कहा था तो वह आश्रय के लिए जयपुर पहुंची थीं, लेकिन उन्हें वहां से भी जाना पड़ा था.

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