यंहा मुगलकाल में होता था मुजरा,अब चल रहा है ‘वेश्यालय’

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वेश्यावृत्ति को लेकर हर देश में अलग अलग कानून होते हैं वैसे ही कानून हमारे देश में भी हैं। इतनी सख्ती होने के बावजूद भी यहां चोरी-छिपे यह धंधा होता रहता है। ऐसी ही जगह है बिहार में, जहां यह धंधा पारिवारिक है यानी कि मां के बाद बेटी को अपने जिस्‍म का सौदा करना पड़ता है। जंहा दिन के उजाले में जंहा लोग इन बदनाम गलियों में झांकना भी पसंद नहीं करते, लेकिन रात होते ही यहां उन्ही शरीफजादों की लाइन लगनी शुरु हो जाती है। वेश्यावृत्ति एक ऐसा व्यापार जो न जाने कब से यहां चला आ रहा है, हमारा सभ्य समाज इसे घोर पाप समझता है, तो कुछ लोग इसे मजबूरी का नाम देते हैं। हमारे लिए टिप्पणी करना आसान है क्योंकि हम वो ज़िन्दगी नहीं जी रहे हैं, उनकी जिंदगी का दर्द बयां नहीं कर सकते, लेकिन उनकी जिंदगी में झांक कर तो देख सकते हैं कि कैसे मौत से बदतर जिंदगी जीती है एक वैश्या…

 मुजरा यंहा बीते कल की बात 

अगर यहां के इतिहास पर नजर डालें तो पन्‍नाबाई, भ्रमर, गौहरखान और चंदाबाई जैसे नगीने मुजफ्फरपुर के इस बाजार में आकर लोगों को नृत्‍य दिखाकर मनोरंजन किया करते थे, लेकिन अब यहां मुजरा बीते कल की बात हो गई और नए गानों की धुन पर नाचने वाली वो तवायफ़ अब प्रॉस्‍टीट्यूट बन गईं। इस बाजार में कला, कला न रही बल्कि एक बाजारू वस्‍तु बनकर रह गई।

वैसे तो बिहार के मुज़फ्फरपुर ज़िले के ‘चतुर्भुज स्‍थान’ नामक जगह पर स्‍थित वेश्‍यालय का इतिहास मुग़लकालीन समय का बताया जाता है। यह जगह भारत-नेपाल सीमा के करीब है और यहां की आबादी लगभग 10 हजार है। पुराने समय में यहां पर ढोलक, घुंघरुओं और हारमोनियम की आवाज़ ही पहचान हुआ करती थी क्योंकि पहले यह कला, संगीत और नृत्‍य का केंद्र हुआ करता था।

अब यहां लगता है जिस्‍म का बाज़ार

लेकिन अब यहां जिस्‍म का बाज़ार लगता है। सबसे खास बात यह है कि वेश्‍यावृत्‍ति यहां पर पारिवारिक व पारंपरिक पेशा माना जाता है। परिवार का लालन–पालन करने के लिए मां के बाद उसकी बेटी को यहां अपने जिस्‍म का सौदा करना पड़ता है।पुराने जमाने में यहां काम करने वाली महिलाओं को शिवदासी भी कहा जाता था। चतुर्भुज स्थान में देह व्यापार कर अपनी जीवन यापन करने वाली ऐसी हजारों महिलाएं हैं। जिनकी कमाई 10 रुपय से लेकर 1 हजार तक रोजाना होती है। यहां बसे परिवारों का पारंपरिक पेशा देह व्यापार ही है।

घर के बार लगा होता है बोर्ड 

मोहल्ले के अधिकांश घर के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में टांगा एक बोर्ड लगा रहता है, जिसमें यह लिखा होता है कि यहां लड़कियों को नाचने गाने की शिक्षा दी जाती है। साथ ही देह व्यापार करने वाली 13 से लेकर 33 वर्ष तक की लड़कियां उपलब्ध हैं।

एड्स से पीड़ित बच्चियां भी है इस बदनाम मोहल्ले में 

यहां रहने वाली लगभग 30 से 40% बच्च‍ियों ने यह दबी जुबान से स्वीकार किया है की जरूरत पड़ने पर उन्हें भी देह व्यापार करना पड़ता है। वहीं कुछ ऐसी बच्चियां हैं जिनके मां-बाप उन्हें इस धंधे में नहीं धकेलते हैं। आपको बताते चलें कि एक सर्वे के दौरान यह पता चला था कि इस इलाके में असम, बंगाल, नेपाल और उत्तर प्रदेश से बड़े पैमाने पर लड़कियों को बहला-फुसलाकर लाया जाता है और जबरन देह व्यापार के दलदल में उतार दिया जाता है।

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