उत्तराखंड विशेष : ‘फूलों की घाटी’ – एक अद्भुत नज़ारा !!

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क्या महसूस करेंगे आप अगर आपको आपके पास ही स्वर्ग जैसा वातावरण मिल जाये. वैसे तो उत्तराखण्ड को यूँ ही देव नगरी नहीं कहा गया है, उत्तराखंड ही वो जगह है जहा से महाभारत के पांडव स्वर्ग की राह पर निकले थे पर सिर्फ युधिष्ठिर ही स्वर्ग को प्राप्त कर पाए थे. खैर,इस बारे में हम आपको बाद में बताएंगे. आज हम इस स्वर्ग की नहीं बल्कि किसी और स्वर्ग की बात कर रहे हैं. एक ऐसी जगह जो स्वर्ग से कम नहीं, एक ऐसी जगह जो मनमोहक है. बात करते हैं आज हम फूलों की घाटी की.
वैसे इसके बारे में कौन नहीं जनता होगा, विश्व धरोहर जो है तो जानना लाजमी है. फिर भी फूलों की घाटी के बारे में कुछ डिटेल बताते हैं..

कुछ ख़ास
फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान Valley of Flowers National Park जिसे आम तौर पर सिर्फ़ फूलों की घाटी कहा जाता है, भारत का एक राष्ट्रीय उद्यान है जो उत्तराखण्ड के हिमालयी क्षेत्र में स्थित है। नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान विश्व धरोहर स्थल में घोषित हैं। यह उद्यान 87.50 किमी वर्ग क्षेत्र में फैला हुआ है।
फलों की घाटी को 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। यहाँ से प्रवेश स्थल की दूरी 13 किमी है जहाँ से पर्यटक 3 किमी लम्बी व आधा किमी चौड़ी फूलों की घाटी में घूम सकते हैं।

 

आध्यात्मिक गाथा
नंदकानन के नाम से इसका वर्णन रामायण और महाभारत में भी मिलता है, जिसके बारे में कहा गया है कि त्रेता युग में राम-रावण युद्ध में घायल लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी खोजते हुए हनुमान यहां तक आ गए थे. उन्हें संजीवनी बूटी यहीं के पहाड़ों पर मिली थी.

हमारे समय यानि कलयुग की बात करें तो इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश काल में ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने लगाया था, जो इत्तेफाक से 1931 में अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे. वे घाटी की बेइंतहा खूबसूरती से प्रभावित होकर 1937 में इस घाटी में वापस आये और, 1968 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से एक किताब प्रकाशित करवायी. तब से इस घाटी को फूलों की घाटी कहा जाने लगा .

 

जादुई जगह
बर्फ के पर्वतों से घिरा हुआ और फूलों की 500 से अधिक प्रजातियों से सजा हुआ यह क्षेत्र बागवानी विशेषज्ञों या फूल प्रेमियों के लिए एक विश्व प्रसिद्ध स्थल बन गया. परन्तु स्थानीय लोग इसे परियों और किन्नरों का निवास समझ कर यहाँ आने से अब भी कतराते हैं. उनका कहना है की दिन में तो ठीक है पर रात में यह आना खतरे को बुलावा देने के बराबर है. हलाकि आधुनिक समय में ब्रितानी पर्वतारोही फ़्रैंक स्मिथ ने 1931 में इसकी खोज की थी. और तब से ही यह एक पर्यटन स्थान बन गया. यहाँ हर साल अब हजारो की संख्या में पर्यटक आते हैं और इस घटी की सुन्दरता देख कर मंत्र-मुग्ध रह जाते हैं. वर्ष 1982 में इसे राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया और UNESCO द्वारा विश्व धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया. तथ्यों की मने तो माना जाता है की हर साल बर्फ़ पिघलने के बाद यह घाटी ख़ुद ब ख़ुद बेशुमार फूलों से भर जाती है.

लेकिन मध्य सितंबर से नवंबर के पहले सप्ताह तक यहाँ पर पीक समय होता है,यहीं पर काम करने वाले बागान विशेषज्ञ दर्शन सिंह नेगी का कहना है, ख़ास बात यह है कि हर हफ़्ते यहाँ फूलों का खिलने का पैटर्न बदल जाता है जो फूल आपको इस हफ़्ते दिखेंगे, अगले हफ़्ते वहाँ कोई और फूल खिला होगा। जो की एक बहुत ही आश्चर्यजनक प्राकृतिक घटना है और बहुत ही सुरम्य प्रतीत होती है जो मन को मोह लेती है।

फूलों का दवाइयों में इस्तेमाल
कहा जाता है की यहाँ के फूलों में अद्भुत औषधीय गुण होते हैं और यहाँ मिलने वाले सभी फूलों का दवाइयों में इस्तेमाल होता है। संजीविनी की कथा अगर सच है तो ये बात भी सिद्ध होती है कीयहाँ के फूलों में अद्भुत औषधीय गुण होते हैं . वही हृदय रोग, अस्थमा, शुगर, मानसिक उन्माद, किडनी, लीवर और कैंसर जैसी भयानक रोगों को ठीक करने की क्षमता वाली औषधिया भी यहाँ पाई जाती है. वैसे तो यह जाने का अनुभव शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता पर अगर इसके बारे में देखने के बाद महसूस किया जा सकता है.

इसके अलवा यहाँ सैकड़ों बहुमूल्य जड़ी-बूटियाँ और वनस्पति पाए जाते हैं जो की अत्यंत दुर्लभ हैं और विश्व में कही और नहीं पाए जाते, जो की इस घटी को और भी अधिक सुन्दर और महत्वपूर्ण बना देते है, पर्यटकों को यहाँ आने के लिए ऋषिकेश से गोविंदघाट तक मोटर मार्ग और फिर गोविंदघाट से सत्रह किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करना होता है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अगर इस जगह की पूरी देखरेख न होने से यहाँ बड़े पैमाने पर जड़ी बूटियों की तस्करी होने लगती है. लेकिन दस साल पहले यहाँ लोगों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी और उसके बाद वनस्पतियों को एक बार फिर फलने-फूलने का मौक़ा मिला। यहाँ के अधिकारी अब काफ़ी संतुष्ट नज़र आते हैं, उनका कहना है कि इस बार रिकॉर्ड संख्या में पर्यटक यह घाटी देखने आए हैं. नवंबर के अंत तक यह घाटी एक बार फिर बर्फ़ की चादर तले ढंक जाएगी.

कुछ अद्भुत पौधे
नवम्बर से मई तक सामान्य रहती है, पर जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान यहाँ कई प्रज्तियो के लाखो पुष्प और पौधे एक साथ खिल उठते है तथा एल्पाइन जड़ी की छाल की पंखुडियों में रंग छिपे रहते हैं.

यह जाने वाले फूलों के पौधों की गिनती में है : एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान इत्यादि प्रमुख हैं। हलाकि ये यहाँ पाए जाने वाले लाखो प्रजातियों में से बहुत थोड़े ही है किन्तु यहाँ अरबो किस्मे पाई जाती है, जो हर बार अलग अलग होती हैं . अतः इस एक लेख में फूलों की घटी का वर्णनं करना कदाचित संभव भी नहीं है.

 

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