पहाड़ों से पलायन के बड़े कारण से सरकार अब तक बेखबर!

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रुद्रप्रयाग;      उत्तराखण्ड के पहाड़ी जिलों से पलायन रोकने के दावे भले ही सरकारें बहुत कर रही हों लेकिन पहाड़ के दूरस्थ जिलों के ग्रामीण लोग आज भी खेती पर निर्भर रहते हैं। किसान साल भर हाड़तोड़ मेहनत तो करते हैं मगर जंगली जानवर उनकी फसलों को पल भर में चैपट कर देते हैं ऐसे में किसानों का लगातार खेती से मोह भंग होता जा रहा है और वे पलायन करने के लिए विवश हो रहे हैं।

इन दिनों जनपद में धान की फसल, मंडुवा, गोभी, हल्दी, अदरक आदि फसलों को जंगली सुअर और बंदर चैपट कर रहे हैं। आलम यह है कि अब कटाई के समय फसलों को इन जंगली-जानवरों ने नेस्तनाबूत कर के रख दिया है जिससे किसान निराश हैं। स्यूण्ड, दरम्वाड़ी, क्यार्क, कमेड़ा, थलासू, सतेरा, स्यूपुरी खतेणा, नारी आदि गांवों के किसानों की लाखों की फसल का नुकसान कर दिया। है। किसानों का साफ तौर पर कहना है कि जंगली जानवरों का आतंक हमेशा से रहा है। कई बार वन विभाग को इन जानवरों से निजात दिलाने की गुहार भी लगाई जा चुकी है किन्तु कोई सुनवाई नहीं होती । अब उन्होंने सरकार से मुआवजे की मांग की है।
उधर जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने भी स्वीकार किया है कि जंगली जानवरों ने किसानों की फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया है। उनका कहना है कि उत्तराखण्ड सरकार ने एक जीओ निकाला है कि वन विभाग की तरफ से ही जंगली जानवरों को मारने की अनुमति दी जा सकती है किन्तु हमारे जनपद में यह अभी लागू नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि इसमें जल्द ही आवश्यक कार्यवाही की जायेगी।
सरकार और उनके कारिन्दे कुछ भी कहें किन्तु जमीन पर किसानों के लिए आज भी स्पष्ट नीति न बन पाना पलायान का भी मुख्य कारण है। बता दें कि पहाड़ के ज्यादातर लोग आज भी खेती पर निर्भर हैं मगर जब खेती भी जानवर द्वारा तबाह की जायेगी तो आखिर किसान क्या किजै। यह एक बड़ा सवाल है जिस पर गम्भीरता से कार्ययोजना बनाकर अमलीजामा पहना आवश्यक है।

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