- शास्त्रों और पुराणों में बद्रीनाथ को दूसरा बैकुण्ठ कहा जाता है। एक बैकुण्ठ क्षीर सागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं तो दूसरा निवास बद्रीनाथ है, जो कि धरती पर ही मौजूद है। ऐसी मान्यता है कि बद्रीनाथ में कभी भगवान शिव का निवास स्थान हुआ करता था, लेकिन विष्णु भगवान ने इस स्थान को शिव से मांग लिया था।
- पुराणों की मान्यतानुसार बद्रीनाथ में हर युग में बड़ा परिवर्तन हुआ। सतयुग तक यहां पर हर व्यक्ति को भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुआ करते थे। त्रेता में यहां देवताओं और साधुओं को भगवान के साक्षात् दर्शन मिलते थे। द्वापर में जब भगवान श्री कृष्ण रूप में अवतार लेने वाले थे उस समय भगवान ने यह नियम बनाया कि अब से यहां मनुष्यों को उनके विग्रह के दर्शन होंगे। तब से यहां भगवान के उस विग्रह के दर्शन प्राप्त होते हैं।
- चार धाम यात्रा में सबसे पहले गंगोत्री के दर्शन होते हैं यह हैं गोमुख जहां से मां गंगा की धारा निकलती है और इस यात्रा में सबसे अंत में बद्रीनाथ के दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच स्थित है। इसे नर नारायण पर्वत कहा जाता है। कहते हैं यहां पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। नर अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्री कृष्ण हुए।
- बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के साथ ही देश के चार धामों में से भी एक है। ऐसा कहा जाता है कि ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी’ यानी जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे पुनः माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता है। इसलिए शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार बद्रीनाथ के दर्शन जरूर करना चाहिए।
- जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर का संबंध बद्रीनाथ से माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर भगवान में नृसिंह की एक बाजू काफी पतली है जिस दिन यह टूट कर गिर जाएगा उस दिन नर नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बद्रीनाथ के दर्शन वर्तमान स्थान पर नहीं हो पाएंगे।
- कहते हैं एक बार देवी लक्ष्मी जब भगवान विष्णु से रूठ कर मायके चली गई तब भगवान विष्णु यहां आकर तपस्या करने लगे। जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई तो भगवान विष्णु को ढूंढते हुए यहां आई। उस समय यहां बदरी का वन यानी बेड़ फल का जंगल था। बदरी के वन में बैठकर भगवान ने तपस्या की थी इसलिए देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बद्रीनाथ नाम दिया। इस प्रकार इस स्थान का नाम बद्रीनाथ पड़ा।
- बद्रीनाथ यात्रा में दूसरा पड़ाव यमुनोत्री है, जो कि देवी यमुना का मंदिर है, इसके बाद ही केदारनाथ के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि जब केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं उस समय मंदिर में एक दीपक जलता रहता है। इस दीपक के दर्शन का बड़ा महत्व है। ऐसा माना जाता है कि 6 महीने तक बंद दरवाजे के अंदर इस दीप को देवता जलाए रखते हैं।
- सरस्वती नदी के उद्गम पर स्थित सरस्वती मंदिर बद्रीनाथ से तीन किलोमीटर की दूरी पर माणा गांव में स्थित है। सरस्वती नदी अपने उद्गम से महज कुछ किलोमीटर बाद ही अलकनंदा में विलीन हो जाती है और बद्रीनाथ भी कलियुग के अंत में वर्तमान स्थान से विलीन हो जाएंगे और इनके दर्शन नए स्थान पर होंगे जिसे भविष्य बद्री के नाम से जाना जाता है।
- मान्यताओं में है कि बद्रीनाथ में भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। जिसे आज ब्रह्म कपाल के नाम से जानते है वह इस घटना की याद दिलाता है। ब्रह्मकपाल एक ऊंची शिला है जहां पितरों का तर्पण श्रद्घ किया जाता है। माना जाता है कि यहां श्राद्घ करने से पितरों को मुक्ति मिल जाती है।
- क्या आप जानते हैं कि बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं जो रावल कहलाते हैं। जब तक यह रावल के पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।