गूगल ने डूडल बनाकर किया इस उत्तराखंडी को सम्मानित!

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नैन सिंह रावत (1830-1895) एक ऐसा नाम जिन्होंने अंग्रेजों के लिये हिमालय के क्षेत्रों की खोजबीन की। नैन सिंह ने नेपाल से होते हुए तिब्बत तक के व्यापारिक मार्ग का मानचित्रण किया, यही नहीं सबसे पहले ल्हासा की स्थिति तथा ऊँचाई ज्ञात की और तिब्बत से बहने वाली मुख्य नदी त्सांगपो(Tsangpo) के बहुत बड़े भाग का मानचित्रण भी किया।
पंडित नैन सिंह रावत का जन्म पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील स्थित मिलम गांव में 21 अक्तूबर 1830 को हुआ था। उनके पिता अमर सिंह को लोग लाटा बुढा के नाम से जानते थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही की लेकिन आर्थिक तंगी के कारण जल्द ही पिता के साथ भारत और तिब्बत के बीच चलने वाले पारंपरिक व्यापार से जुड़ गये। इससे उन्हें अपने पिता के साथ तिब्बत के कई स्थानों पर जाने और उन्हें समझने का मौका मिला।
साथ ही उन्होंने तिब्बती भाषा सीखी जिससे आगे उन्हें काफी मदद मिली। हिन्दी और तिब्बती के अलावा उन्हें फारसी और अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान था। अधिकतर समय नैन सिंह ने खोज और मानचित्र तैयार करने में ही बिताया।
अंतिम अभियान तक नैन सिंह कुल ने 16000 मील की कठिन यात्रा की थी और अपने यात्रा क्षेत्र का नक्शा बनाया था जिसके बाद उनकी तबियत गंभीर भी हो गई। उनकी आंखें बहुत कमजोर हो गयीं बावजूद इसके वो कई सालों तक अन्य लोगों को सर्वे और जासूसी की कला सिखाते रहे।


उन्होंने ग्रेट हिमालय से परे कम जानकारी वाले प्रदेशों मध्य एशिया और तिब्बत की जानकारी दुनिया के सामने रखी थी। इन क्षेत्रों के भूगोल के बारे में उनकी एकत्र वैज्ञानिक जानकारी मध्य एशिया के मानचित्रण में एक प्रमुख सहायक साबित हुई। सिंधु, सतलुज और सांगपो नदी के उद्गम स्थल और तिब्बत में उसकी स्थिति के बारे में विश्व को उन्होने ही अवगत कराया था। चीन की सांगपो नदी और भारत में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी वास्तव में एक ही नदी हैं इसका पता भी नैन सिंह ने बताया।


उनकी यात्राओं पर कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इनमें डेरेक वालेर की ‘द पंडित्य’ तथा शेखर पाठक और उमा भट्ट की ‘एशिया की पीठ पर’ महत्वपूर्ण है। जून 27, 2004 को भारत सरकार ने नैन सिंह के ‘ग्रेट ट्रिगनोमैट्रिकल सर्वे’ में अहम भूमिका के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया ।
65 वर्ष की आयु में सन् 1895 में, जब वे तराई क्षेत्र में सरकार द्वारा दी गई जागीर की देखरेख के लिए गये थे, इन महान अन्वेषक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।

 

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