केदारनाथ शिलापट्ट से उत्तराखंड की राजनीति में आया भूचाल!

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केदारनाथ में विकास योजनाओं के शिलापट्ट लगने से उत्तराखंड की राजनीति एक बार फिर से गर्मा गई है। बता दें कि शिलापट्ट में क्षेत्रीय सांसद, पर्यटन मंत्री व विधायक का नाम ना होने से सियासी हलकों में बवाल मच गया है। ऐसे में न सिर्फ सरकार बल्कि भाजपा के सामने अंदरूनी मोर्च पर भी कुछ सवालों से जूझने की चुनौती आ खड़ी हो गई है।
बताते चलें कि बिते 20 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदार नाथ आए थे। अपने इस दौरे पर पीएम मोदी ने केदारनाथ के विकास से जुड़ी विभिन्न योजनाओं का शिलान्यास किया। इसके साथ ही यहां कार्यक्रम से संबंधित जिस शिलापट्ट पर शुभारंभ अवसर पर जो नाम अंकित हैं उसने उत्तराखंड भाजपा को अंदरूनी तौर पर सवालों के कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। दरअसल शिलापट्ट पर क्षेत्रीय सांसद बी.सी. खंडूडी का नाम तो है ही नहीं परंतु चैकाने वाली बात तो यह है कि शिलान्यास के मौके पर बी.सी. खंडूडी को न्यौता तक नहीं मिला।
हालांकि भाजपा सूत्रों का कहना है कि खंडूड़ी को केदारनाथ कार्यक्रम का न्यौता दिया था लेकिन अस्वस्थता के कारण उन्होंने मना कर दिया। इन सबके बावजूद तीर्थ धाम केदारनाथ में यह कार्यक्रम पर्यटन के अंतर्गत रहा है और कई दिनों से इसे लेकर खासी चर्चा चल रही थी, खंडूड़ी के साथ -साथ पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का नाम भी नदारद है। इसी के साथ स्थानीय विधायक मनोज रावत का नाम न होने पर कांग्रेस पहले ही सरकार पर हमलावर है। सबसे चैंकाने वाली बात तो यह रही कि राज्य मंत्री धन सिंह रावत का नाम शिलापट्ट पर अंकित है।
जबकि राज्य मंत्री न तो क्षेत्र के विधायक हैं और न ही सांसद। यहां तक कि क्षेत्र से उनका दूर तक का नाता नहीं है और जिस विभाग का वह आधा अधूरा दायित्व भी संभाल रहे हैं उसका भी केदारनाथ और यहां पर हो रहे कार्यों से कोई लेना देना नहीं है। न ही उनके विभागों से संबंधित कोई योजना केदार नगरी में संचालित हो रही है। ऐसे में यहां बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर भाजपा हाईकमान को उनके सुर में ही सुर मिलाने को क्यों मजबूर होना पड़ रहा।
ऐसे में कांग्रेस से भगवा बने कई नेता यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उनकी पार्टी में कोई हैसियत है भी या नहीं और खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

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