10 वाद्य यंत्र, जो हैं भारतीय लोक संस्कृति की पहचान,जाने !

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रावण हत्था:

वायलिन की तरह दिखने वाला रावण हत्था श्रीलंका में बहुत अधिक प्रचलित है. इसे भारत के कई हिस्सो में बनाया भी जाता है. इसे बजाने का तरीका बिल्कुल वायलिन की तरह ही होता है.

 डुगडुगी:

भगवान शिव के डमरू के रूप में प्रसिद्ध यह वाद्य यंत्र तमिलनाडु में डुगडुगी के नाम से जाना जाता है.

 संबल:

इस वाद्य यंत्र का प्रयोग मुख्य रूप से पूर्वी भारत में होता है. इसमें दो ड्रम आपस में जुड़े हुए होते हैं लेकिन दोनों की ध्वनि में अंतर होता है. इसे स्टिक से बजाया जाता है.

Kuzhal : Kuzhal नामक वाद्य यंत्रों का प्रयोग केरल में बहुत दिखता है. यह देखने में शहनाई की तरह ही होता है लेकिन इसकी ध्वनि शहनाई से बहुत अधिक तीखी होती है.

सुरसिंगार:

सरोद की तरह दिखने वाला यह वाद्य यंत्र आकार में सरोद से बड़ा होता है. इसे लकड़ी, चमड़ा और धातु से बनाया जाता है. इसकी आवाज सरोद की तरह ही गहरी होती है.

पखावज: 

पखावज को अधिकतर जगहों पर मृदंग के नाम से जाना जाता है. ये देखने में ढोलक की तरह होता है लेकिन इसे बजाया तबले की तरह जाता है.

अलगोजा:  

अलगोजो देखने में दो बांसुरियों की तरह ही होता है. इसे राजस्थानी और पंजाबी संगीत में अधिकतर प्रयोग किया जाता है. बलोच और सिंध के संगीतकार इसका अधिकाधिक प्रयोग करते हुए दिखते हैं.

 

गुबगुबा :  

तबले की तरह दिखने वाला गुबगुबा वाद्य यंत्र तबले से बिल्कुल अलग होता है. इसका एक हिस्सा दो तार से बंधा होता है जो कि दूसरे छोर पर जुड़ते हैं. इसे एक हाथ से बगल में दबाकर बजाया जाता है.

 

 

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