नवरात्रि विशेष: उत्तराखंड की रक्षक माँ धारी देवी!

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पौड़ी:  आद्यशक्ति के रूप में मां धारी देवी की पूजा की जाती है। धारी देवी को श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करने वाली माँ माना जाता है। यहां वर्षभर विशेषकर नवरात्रों के अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को लेकर सिद्धपीठ मां धारी देवी मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।
श्रीनगर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ माँ धारी देवी का मंदिर स्थित है। इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। वर्ष 1807 से ही इसके यहां होने का साक्ष्य मिलते है। जबकि पुजारियों और स्थानीय लोगों का मानना है कि धारी मां का मंदिर इससे भी पुराना है।
मंदिर में आपको अनेकों घंटियां दिखेंगी। घंटियों के बजाने से निकलने वाली ध्वनी सुनकर भक्तगण मंत्रमुग्ध हो उठते हैं और माता के जयकारे लगाते हुए मां के दर्शन का लाभ प्राप्त करते हैं। बद्रीनाथ जाते समय भक्त यहां रुककर माता के दर्शन करना नहीं भूलते। श्रीनगर में स्थित इस धारी देवी मंदिर में माता का केवल सर स्थापित है , मान्यता है कि मां का शरीर रुद्रप्रयाग जिले के कालीमठ में स्थित है। सिद्धपीठ धारी देवी में जो श्रद्धालु सच्चे मन से मन्नत मांगते हैं मां धारी देवी उसे पूर्ण करती है। मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु पुन: यहां आकर घंटी और श्रीफल श्रद्धा से चढ़ाते हैं। पूर्व में यहां मनोकामना पूर्ण होने पर यहां पशुबलि प्रथा थी।
पौराणिक धारणा है कि एक बार भयंकर बाढ़ में पूरा मंदिर बह गया था लेकिन एक चट्टान से सटी मां धारी देवी की प्रतिमा, धारो नाम के गांव में बची रह गई थी। इसके बाद गावं वालों को मां धारी देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी जिसमें मां की प्रतिमा को वहीं स्थापित करने का आदेश दिया गया था। कहते हैं धारी मां के आशीर्वाद से हर मनोकामना पूरी होती है और सभी दुख मिट जाते हैं।

ऐसे पहुंचे : ऋषिकेश और कोटद्वार से सीधी बस सेवाओं से यह स्थल जुड़ा हुआ है। ऋषिकेश से 118 किमी और श्रीनगर से 14 किमी आगे बदरीनाथ नेशनल हाईवे पर कलियासौड़ के समीप सिद्धपीठ धारी देवी मंदिर स्थित है। नेशनल हाईवे से लगभग 300 मीटर की पैदल दूरी पर मंदिर है।

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