कभी ऐसा माना जाता था कि उच्च रक्तचाप केवल बुढ़ापे की बीमारी है, परंतु अब स्थिति तेजी से बदल रही है। 30 साल का युवक भी आज यह कहता सुनाई दे सकता है कि उसे ब्लड प्रेशर है यानी उसका रक्तचाप सामान्य से अधिक है। इस बार हम ब्लड प्रेशर की बीमारी के कुछ ऐसे पक्षों के बारे में बात करेंगे, जिनके बारे में आपको लगता है कि आपको सब पता है, लेकिन ऐसा है नहीं। शायद हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर या हाई बीपी) ही एक ऐसी बीमारी है जिसके विषय में सभी को अपनी-अपनी तरह की इतनी गलतफहमियां हैं कि गिनाना कठिन पड़ जाए।
शारीरिक क्रिया के दौरान अशुद्ध खून पहले दिल के एक भाग से फेफड़ों में प्रवेश करता हैं, फिर वहां से शुद्ध होकर दिल में वापस आ जाता है। फिर दिल का दूसरा भाग खून को पंप करके उसे शरीर के बाकी हिस्सों में भेजता है। दिल जब खून को पंप करता है तो यह क्रिया एक उचित दबाव के साथ की जाती है। जिससे कि आखिरी छोर पर पहुंचने के बाद भी खून में इतना दाब बना रहा सके कि वह फिर से दिल तक लौट कर आ सके। इस पूरी प्रक्रिया में धमनियों की भित्ति पर जा दाब स्थापित होता है वही रक्तचाप है।
हाई बीपी बहुत ही कॉमन बीमारी है। भारत में करीब तीस प्रतिशत लोगों को यह बीमारी है सो आप भी जरूर चेक कराते रहें। अगर आपके परिवार में किसी को हाई बीपी है, या आप मोटे हैं, पड़े-पड़े खटिया या बैठे-बैठे कुर्सी तोड़ते रहते हैं या फिर आप निष्ठापूर्वक दारू-सिगरेट पीते हैं और आपकी कमर फैलती जा रही है (महिलाओं में 80 और पुरुषों में 90 सेंटीमीटर से ज्यादा हो गई है) तो जान लें कि आप हाई रिस्क ग्रुप में हैं।
साधारण तौर पर यह दाब 120 होता है जिसे ऊपरी दाब या सिस्टोलिक कहते हैं। दो बार पंपिग करने के बीच में जो समय होता है उतने समय में दिल आराम कर लेता है यह समय करीब आधा सेकंड का होता हैं, इसी दौरान धमनियों पर दाब काफी घट जाता है और लगभग 90 हो जाता हैं, इसे निचला दाब या डायस्टोलिक कहते हैं। यही स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसके बढ़ने का मतलब यह होता है कि दिल पर बोझ पड़ रहा है।
जब कोई तकलीफ नहीं तो दवा क्यों खाई जाए और परहेज क्यों किया जाए?
यह बात ऊपर से एकदम सही लगती है. लेकिन बीपी की दवाएं नियमित और जीवनभर खाने को आप ऐसे समझें कि आज आप जो दवा ले रहे हैं, वह जीवन बीमा की किस्त चुकाने जैसा है. चुकाने में दिक्कत जरूर होती है, फिर भी हम किस्त चुकाते हैं क्योंकि न जाने कब हमारे ऊपर मुसीबत आ जाए! कुल मिलाकर जान लें कि हाई बीपी की दवाइयां आपको कई मुसीबतों से बचा सकती हैं. जो नियमित दवाएं नहीं लेते, हाई बीपी के ऐसे मरीजों को पता होना चाहिए कि वे कितना खतरा उठा रहे हैं. बीपी कंट्रोल में नहीं है तो आपको हार्ट अटैक की आशंका दोगुनी, हार्ट फेल्योर की तीन गुनी और किडनी फेल होने की आशंका दोगुनी बढ़ जाती है. इन आपात बीमारियों का कोई बहुत अच्छा इलाज आज भी उपलब्ध नहीं है.
तो फिर हाई बीपी के मरीज क्या करें?
अगर डॉक्टर ने आपको हल्का-सा, बॉर्डर लाइन को छूता हुआ भी हाई बीपी बताया है तो आपको नियमित दवाएं लेकर, नियमित जांच करवाते हुए सुनिश्चित करते रहना चाहिए कि बीपी हमेशा 140/90 के नीचे ही रहे. अगर आपको डायबिटीज़ वगैरह भी है तब तो बीपी और भी कम रहना चाहिए. कुछ बातें और याद रखें :
दवाएं लगभग जीवनभर चलनी हैं, परंतु उनका डोज़ आवश्कतानुसार बदल सकता है. इसलिए भी नियमित बीपी जांच जरूरी है. हर बार का डोज़ जांच के बाद तय होगा. जिस भी अंतराल पर डॉक्टर आपको बुलाए, जांच के लिए जाते रहें.
क्या हाई बीपी में होम्योपैथी या आयुर्वेद या योग थैरेपी ट्राई करें? मैंने इनसे कभी बीपी ठीक होते नहीं देखा. हां, लेकिन कभी ट्राई करें, तो भी दूसरे डॉक्टर से बीपी चेक जरूर करवाते रहें. अगर आपका बीपी 140/90 के नीचे रहता है तो जो ले रहे हैं, ले सकते हैं. मूल मुद्दा है, बीपी कंट्रोल में रखने का, वो चाहे जैसे भी हो.
जब तक धमनियां एकदम चिकनी और खुली रहती हैं तब तक खून एक निश्चित और स्थिर दबाव से बहता रहता है। जब तक शरीर की धमनियां व खून की नलिकाएं अपने स्वाभाविक रूप में रहती हैं यानी जब तक ये लचीली रहती हैं, इनके छेद खुले रहते हैं तब तक खून को आगे बढ़ाने के लिए दिल को जरूरत से ज्यादा दबाव डालने की जरूरत नहीं पड़ती और रक्त अपनी स्वाभाविक गति में हृदय से निकलकर धमनियों और खून की नलिकाओं की ओर से शरीर के हर भाग में पहुंचता रहता है। लेकिन जब धमनियां कठोर और संकरी हो जाती हैं तो खून को शरीर के बाकी हिस्सों में पहुंचाने के लिए दिल को जरूरत से ज्यादा दबाव डालकर उन संकरी और कठोर धमनियों में खून को धकेलना पड़ता है।
अनियमित जीवन तथा खानपान के साथ?साथ और भी कई कारण उच्च रक्तचाप के लिए उत्तरदायी हैं। चिंता, क्रोध, ईष्र्या, भय आदि मानसिक विकार भी उच्च रक्तचाप का कारण होते हैं।