कुंडली के आठवें स्थान का दें विशेष ध्यान, यह मृत्यु भाव का स्थान है! जानने के लिए पढ़िए और शेयर कीजिए

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प्राय: मृत्यु से सब डरते हैं, कोई भी मरना नहीं चाहता, लेकिन मरना तय है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में उल्लेख किया है कि ‘धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा, सो झरा, जो बरा सो बुताना’ यानि इस पृथ्वी का प्रमाण है कि जो फल लगा है वह गिरा है और जो जला है वह बुझा है। यानि मृत्यु निश्चित है। ज्योषित के अनुसार देखें तो अष्टम भाव आयु भाव है इस भाव को त्रिक भाव, पणफर भाव और बाधक भाव के नाम से जाना जाता है । आयु का निर्धारण करने के लिए इस भाव को विशेष महत्ता दी जाती है। इस भाव से जिन विषयों का विचार किया जाता है। उन विषयों में व्यक्ति को मिलने वाला अपमान, पदच्युति, शोक, ऋण, मृत्यु इसके कारण है। इस भाव से व्यक्ति के जीवन में आने वाली रुकावटें देखी जाती है। आयु भाव होने के कारण इस भाव से व्यक्ति के दीर्घायु और अल्पायु का विचार किया जाता है।
अष्टम भाव आयु को दर्शाता है यह भाव क्रिया भाव भी है। इसे रंध्र अर्थात छिद्र भी कहते हैं क्योंकि यहाँ जो भी कुछ प्रवेश करता है वह रहस्यमय हो जाता है। जो वस्तु रहस्यमय होती है वह परेशानी व चिंता का कारण स्वत: ही बन जाती है। बली अष्टम भाव लम्बी आयु को दर्शाता है। साधारणत: अष्टम भाव में कोई ग्रह नहीं हो तो अच्छा रहता है। यदि कोई भी ग्रह आठवें भाव में बैठ जाये चाहे वह शुभ हो या अशुभ कुछ न कुछ बुरे फल तो अवश्य ही देता है।
ग्रह कैसे फल देगा यह तो ग्रह के बल के आधार पर ही निर्भर करता है। इस अवस्था में अगर किसी ग्रह को आठवें भाव में देखा जाए तो वह उस भाव का स्वामी ही है। कोई भी ग्रह आठवें भाव में बैठता है तो अपने शुभ स्वभाव को खो देता है। शनि को अपवाद रूप में आठवें भाव में शुभ माना गया है, क्योंकि वह आयु प्रदान करने में सहायक बनता है। अष्टमेश आठवें भाव की रक्षा करता है। अष्टमेश की मजबूती का निर्धारण उस पर पड़ने वाली दृष्टियों अथवा संबंधों के द्वारा होती है।
कुछ अन्य तथ्यों द्वारा देखा जाए तो अष्टमेश अचानक आने वाले प्रभाव दिखाता है। यह भाव जीवन में आने वाली रूकावटों से रूबरू कराता है। जहां -जहां अष्टमेश का प्रभाव पड़ता है उससे संबंधित अवरोध जीवन में दिखाई पड़ते हैं। अष्टमेश जिस भाव में स्थित होता है उस भाव के फल अचानक दिखाई देते हैं और वह अचानक से मिलने वाले फलों को प्रदान करता है।
अष्टम भाव का कारक ग्रह शनि है। आयु के लिए इस भाव से शनि का विचार किया जाता है। अष्टम भाव सूक्ष्म रुप में जीवन के क्षेत्र की बाधाएं देखी जाती है। अष्टमेश व नवमेश का परिवर्तन योग बन रहा हों, तो व्यक्ति पिता की पैतृक संपति प्राप्त करता है | अष्टमेश व दशमेश आपस में परिवर्तन योग बना रहा हों, तो व्यक्ति को कार्यों में बाधा, धोखा प्राप्त हो सकता है। उसे जीवन में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है।
सशक्त शुक्र अष्टम भाव में भी अच्छा फल प्रदान करता है। शुक्र अकेला अथवा शुभ ग्रहों के साथ शुभ योग बनाता है। स्त्री जातक में शुक्र की अष्टम स्थिति गर्भपात को सूचक। आठवें भाव का शुक्र जातक को विदेश यात्रायें जरूर करवाता है,और अक्सर पहले से माता या पिता के द्वारा सम्पन्न किये गये जीवन साथी वाले रिस्ते दर किनार कर दिये जाते है,और अपनी मर्जी से अन्य रिस्ते बनाकर माता पिता के लिये एक नई मुसीबत हमेशा के लिये खड़ी कर दी जाती है।
जातक का स्वभाव तुनक मिजाज होता है। पुरुष वर्ग कामुकता की तरफ़ मन लगाने के कारण अक्सर उसके अन्दर जीवन रक्षक तत्वों की कमी हो जाती है,और वह रोगी बन जाता है,लेकिन रोग के चलते यह शुक्र जवानी के अन्दर किये गये कामों का फ़ल जरूर भुगतने के लिये जिन्दा रखता है,और किसी न किसी प्रकार के असाध्य रोग जैसे तपेदिक या सांस की बीमारी देता है,और शक्तिहीन बनाकर बिस्तर पर पड़ा रखता है। इस प्रकार के पुरुष वर्ग ्त्रिरयों पर अपना धन बरबाद करते है,और स्त्री वर्ग आभूषणों और मनोरंजन के साधनों तथा महंगे आवासों में अपना धन व्यय करती है।
अष्टम भाव अचानक प्राप्ति का है इसके अंदर ज्योतिषी विद्याएं गुप्त विद्याएं अनुसंधान समाधि छुपा खजाना अध्यात्मिक चेतना प्राशक्तियों की प्राप्ति योग की ऊंची साधना, पैतृक संपत्ति विरासत, अचानक आर्थिक लाभ अष्टम भाव के सकारात्मक पक्ष है और लंबी बीमारी मृत्यु का कारण तथा दांपत्य जीवन अष्टम भाव के नकारात्मक पक्ष है।
आठवें भाव में शुक्र होने के कारण जातक देखने में सुंदर होते है। निडर और प्रसन्नचित्त शारीरिक,आर्थिक अथवा स्त्री विषय सुखों में से कम से कम कोई एक सुख पर्याप्त मात्रा में इन्हे मिलता है।

 

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