कहीं आपका बच्चा नशा कारोबारियों के जाल में तों नहीं! उत्तराखंड बना नशे के कारोबारियों का सॉफ्ट टारगेट

देहरादून। उत्तराखंड नशे की चपेट में आता जा रहा है। इसका कारण जहां अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं हैं, चीन और नेपाल जैसी सीमाओं से सटा होने के कारण नशे की खेफ इधर आ रही है। उसी प्रकार हरियाणा और पंजाब की ओर से भी नशे के कारोबारी उत्तराखंड को सॉफ्ट टारगेट मान रहे हैं। आए दिन हरियाणा और पंजाब ब्रांड की शराब पकड़ा जाना इसी का प्रमाण है।
फरवरी 2018 में रामनगर में 125 पेटी शराब पकड़ी गई। पिथौरागढ़ में 13 पेटी हरियाणा ब्रांड की शराब पकड़ी गई। फरवरी में 25 लाख की शराब उत्तराखंड में पकड़ी गई। यह आंकड़े इसी साल के हैं, जो इस बात को बताने को काफी है कि नशे के कारोबारियों के लिए उत्तराखंड सॉफ्ट टारगेट है। यही स्थिति चरस, कोकिन तथा अन्य नशे के सामानों की है। एक सर्वे में पाया गया है कि सर्वे में पाया गया है कि उत्तराखंड में 5 सौ करोड़ से अधिक का कारोबार सालाना नशे के कारोबारियों के हाथ में है।
देहरादून ईस्ट कैनाल, वेस्ट कैनाल से घिरा हुआ था, जहां लीची अमरुद्ध और आम के साथ-साथ चकोतरा जैसे फलों के लिए देहरादून केंद्र था। 2000 में उत्तराखंड का देहरादून शहर राजधानी बना। इसके बाद तो लगातार शहर का विस्तार होता रहा और हजारों हजार की संख्या में देशी-विदेशी छात्र यहां पढ़ने आए। तमाम लोग औद्योगिक क्षेत्र में नौकरी करने आए, जिसके कारण यहां हर प्रकार के लोग बढ़ते रहे। इन लोगों के आने के कारण यहां नशे के कारोबारी भी खूब बढ़े हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2017 में पुलिस ने प्रदेश के सभी 13 जनपदों से 10 करोड़ रुपये से अधिक की नशे की खेप पकड़ी। इस खेप का 70 प्रतिशत से अधिक माल देहरादून से बरामद हुआ ,जिसमें लगभग 11 सौ लोगों की गिरफ्तारी हुई। आंकड़े बताते हैं कि प्रतिदिन लगभग प्रतिदिन दो नशे के कारोबारी देहरादून में पकड़े जाते हैं।

वर्ष 2018 में जनवरी से अप्रैल तक दो करोड़ से अधिक कीमत का नशे का सामान पकड़ा गया है, जिसमें 275 लोग हिरासत में लिए गए हैं, जबकि राज्य में यही आंकड़ा तीन करोड़ से अधिक है और लगभग पांच सौ लोग हिरासब में लिए गए हैं। यह स्थिति तब है जब लगातार सचेष्टता और सतर्कता बरती जा रही है। आज भी कई क्षेत्र ऐसे है जहां शायद पुलिस की पहुंच नहीं है।
यह आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि नशे के कारोबारी भारी संख्या में अपना कारोबार यहां जमा चुके हैं। इनकी पहुंच मजदूरों और विद्यार्थियों में अधिक बढ़ रही है, जिसके कारण भावी पीढ़ी के नशेड़ी होने की संभावना है। उत्तराखंड के विभिन्न संस्थानों में पढ़ रहे छात्र-छात्राएं इन नशे कारोबारियों के संपर्क में जल्दी आ जाते हैं और इनका कारोबार चल निकलता है। जहां नालों-खालों में तमाम बांग्लादेशी अल्पसंख्यक समाज के लोग बस चुके हैं, उनमें से अधिकांश लोगों ने अपने राशनकार्ड तक बनवा लिए है, वहीं कोढ़ में खाज का काम नशे के कारोबारी कर रहे हैं, जिन्होंने देहरादून को अपनी गिरफ्त में ले रखा है।
नशे के जो कारोबारी हिरासत हैं अथवा पकड़े गए हैं उनमें में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, बरेली, बिजनौर और सहारनपुर से जुड़े लोगों की संख्या सर्वाधिक है। इन लोगों के कब्जे से स्मैक, नशीली गोलियां-कैप्सूल- इन्जेक्शन, गांजा, ब्राउन शुगर, हेरोइन, भांग और अफीम जैसे नशे का सामान बरामद हुआ है। यह बात सच है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के कारोबारी यहां अच्छा खासा कारोबार कर रहे हैं पर यह कारोबारी बड़ी चालाकी से अपने कारोबार को लगातार धार दे रहे हैं। पुलिस प्रशासन की माने तो गत वर्ष उत्तरकाशी में 16.80, चमोली में 14.64, अल्मोड़ा में 13.56, बागेश्वर में 14.20, चंपावत में 30.98 और नैनीताल में 42.77 किलो चरस बरामद हुई है जबकि इससे कहीं अधिक खेफ नशेड़ियों तक पहुंच चुकी है। यह आंकड़े इस बात की चुगली करते हैं कि समय रहते यदि इस अवैध कारोबार को न रोका गया तो आने वाली पीढ़ी को नशे की लत से नहीं रोका जा सकता जो प्रदेश के लिए दुखद होगा।

 

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