कहते है पहाड़ में पहाड़ जैसी समस्यायाें से रूबरु होना पडता है, ठीक इसी तरह जाेशीमठ प्रखंड के किमाणा,पल्ला जखाेला,डुमक,कलगाेठ,सहित कई दूरस्त गांवाें में आज भी मूसीबते आजादी से अब तक ग्रामीणाें का पीछा नही छाेड रही है. सड़क के अभाव में यहां किस तरह जिन्दगी गुजर बसर हाे पाती है, इसका एक उदाहरण आज जाेशीमठ के दुर्गम गांव किमाणा के 40वर्षीय बादर सिंह है. जाे आज सुबह अपनी बकरियाें के लिए चारा पत्ती लेने जंगल गया था और अचानक पेड से गिरनें के कारण घायल हाे गया. ऐसे में समस्या तब हुई जब बादर सिंह काे सबसे पहले अस्पताल ले जानें हेतु पैदल ही फिसलन भरे रास्ताें से हाेकर 10 किमी०दूर कैसे ले जायें, मुश्किल बारिश में ही परिजनाें नें अपनाें कंधाें पर लादकर बादर सिंह काे मुख्य सड़क लंगसी तक पहुचाया और यहा से 108 एम्बुलेंस से जिला अस्पताल पहुचाया. जहां घायल जिंन्दगी और माैत के बीच झूल रहा है,सवाल यह है कि आखिर कब तक बिना सडक के ही इन गांवाें के भाेले भाले ग्रामीण यू तडपनें काे मजबूर हाेते रहेंगे. आजादी से अब तक यहां सडक सुविधा न मिल पाना प्रदेश सरकार के सिस्टम पर कही न कही सवाल जरूर खडा करता है.